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विकलांगों के लिए वित्तीय समावेशन
पी.सी. दास
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वित्तीय समावेशन का अर्थ समाज के वंचित समुदाय को सस्ती कीमत पर वित्तीय सेवाओं और विभिन्न वित्तीय उत्पादों को उपलब्ध कराना है। इसमें बैंकिंग उत्पाद और वित्तीय सेवाएं जैसे बीमा, पेंशन और विभिन्न उद्देश्यों के लिए ऋण शामिल हैं। सरकार विकलांगजनों के वित्तीय समावेशन के लिए नयी-नयी योजनाएं ला रही है जिनमें स्वरोजगार ऋण, शिक्षा ऋण, छात्रवृत्तियां आदि प्रमुख हैं।
भारत का संविधान नीति निर्देशक सिद्धांत के तहत अनुच्छेद 39 में कार्य और रोजगार के महत्व को मान्यता देता है, जिसमें राज्य के लिए यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि सभी नागरिकों को समान रूप से आजीविका के पर्याप्त साधनों का अधिकार मिले। भले ही वे पुरुष हों अथवा महिला। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 41 यह प्रावधान करता है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता और विकास की सीमाओं के अंतर्गत कार्य करने का अधिकार हासिल करने के लिए कारगर उपाय करेगा और अनुच्छेद 42 यह प्रावधान करता है कि राज्य कार्य करने की निष्पक्ष और मानवीय स्थितियां हासिल करने के लिए उपाय करेगा। हम यहां मुख्य रूप से विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडीए) के बारे में बात करेंगे।
पीडब्ल्यूडी का अर्थ होता है, ऐसा व्यक्ति जिसकी पारिभाषित विकलांगता 40 प्रतिशत से कम न हो और जिसे चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा प्रमाणित किया गया हो। भारत सरकार ने सामाजिक-आर्थिक समावेश सहित समान अवसर प्रदान करने हेतु विकलांग व्यक्तियों के लिए तीन कानून बनाए हैं (1) भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम, 1992 (2) विकलांग व्यक्ति (पीडब्ल्यूडीएस) कल्याण अधिनियम 1995 और (3) ऑटिज्म, सेरेब्रल पालसी, मानसिक मंदता और बहु विकलांगता वाले व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1995। इसके अतिरिक्त वर्ष 2008 में भारत ने विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र संधि 2006 (यूएनसीआरपीडी) को संपुष्टि दी है, जिसमें समाज में अन्य व्यक्तियों के साथ विकलांग व्यक्तियों को भी पूर्ण और कारगर भागीदारी देने पर जोर दिया गया है। इसी प्रकार, पीडब्ल्यूडी पर राष्ट्रीय नीति में इस बात को मान्यता दी गई है कि विकलांग व्यक्ति एक बहुमूल्य मानव संसाधन हैं और यह नीति समाज में सम्मानजनक जीवन हेतु उनके लिए समान अवसरों की तलाश करती है। यह सभी के लिए एक समावेशी समाज का प्रावधान करती है।
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