|
|
|
DETAIL
STORY |
|
|
|
|
|
|
5. संघीय व्यवस्था पर क्षेत्रीय राजनीति का प्रभाव सुशांत झा |
आलेख में संघीय व्यवस्था पर क्षेत्रीय राजनीति के प्रभावों का विस्तार से वर्णन किया गया है। उदाहरण के तौर पर लेखक ने बताया है कि तेलुगू देशम पार्टी के संस्थापक और आंध्रप्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री एन टी रामाराव का एक मशहूर बयान बार-बार उद्धृत किया जाता है। रामाराव ने केंद्र को एक ‘कंस्पेचुअल मिथ’ यानी अवधारणात्मक मिथक कहा था। उनका यह बयान दरअसल, उन बहुत सारी बातों को अपने आप में समेटता है जो संघीय व्यवस्था में क्षेत्रीय राजनीति के प्रभाव से संबंधित है। यह संयोग ही है कि रामाराव जिस प्रांत से आते थे वहीं के एक अनशनकारी पोट्टू श्रीरामुलू के आन्दोलन ने तत्कालीन नेहरु सरकार को सन् 1953 में न्यायमूर्ति फजल अली के नेतृत्व में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन करने को मजबूर किया था और भाषाई आधार पर राज्यों का गठन किया गया था।
आजादी के बाद भारतीय संघ का गठन उन बहुत सारी भौगोलिक, समाजिक और राजनीतिक विविधताओं को अपने में सहेजने का प्रयास था जो इस देश को विदेशी विद्वानों की नजर में एक अस्वभाविक राष्ट्र बनाती थी। उन विद्वानों को लगता था कि भारत एक आधुनिक राष्ट्र के तौर पर इतना ‘अस्वभाविक है कि इसका ज्यादा दिनों तक वजूद बना नहीं रह पाएगा’। आजादी की लड़ाई के दरम्यान और उसके बाद भी हमारे राष्ट्रनेता इस बात से भलीभांति वाकिफ थे कि भारतीय राष्ट्र का स्वरूप संघात्मक भले ही हो, लेकिन इसकी क्षेत्रीय आकांक्षाओं को भलीभांति पल्लवित होने का अवसर मिलना चाहिए। यही वो वजह थी जिसने यहां पर शासन की एकात्मक राष्ट्रपति प्रणाली को न अपनाकर संसदीय प्रणाली अपनाने को प्रेरित किया लेकिन साथ ही वे उस ऐतिहासिक भय से भी निर्देशित हो रहे थे जिसने केंद्र के कमजोर होने की सूरत में राष्ट्र के बिखरने की बात उनके मन में स्थापित कर रखी थी। संविधान सभा में अपने भाषण में डॉ अम्बेदकर ने कहा था कि इतिहास गवाह है कि जब-जब केंद्र की सत्ता कमजोर हुई है तब-तब देश बिखर गया है। ऐसे में एक मजबूत केंद्र का होना जरूरी है।
अम्बेदकर और देश का तत्कालीन नेतृत्व इस बात से खासतौर पर चिंतित था कि कुछ ही साल पहले एक रक्तरंजित संघर्ष और दंगों के बाद धर्म के नाम पर देश का बंटवारा हो गया था। अम्बेदकर ने अतीत की दासता का जिक्र करते हुए ये भी कहा कि हमारे देश को विदेशी आक्रांताओं से हार का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि हमारे अंदर आपस में फूट थी और एक क्षेत्र दूसरे क्षेत्र की मदद के लिए सामने नहीं आया। मजबूत केंद्र के समक्ष पर्याप्त रूप से स्वायत्त और सक्षम राज्यों की बात भी बराबर की जाती रही। राज्य हमेशा ये मांग करते रहे कि उनकी स्वायत्तता में दखलअंदाजी न की जाए, आर्थिक हिस्सेदारी में बढोत्तरी की जाए और केंद्रीय योजनाओं की संख्या घटाई जाए। संबिधान निर्माण के समय भी राज्यों के प्रतिनिधियों ने केंद्र की अत्यधिक शक्तियों का विरोध किया और कहा कि देश को एक ‘संघीय नहीं बल्कि एकात्मक संविधान मिला है और लोकतंत्र की अवधारणा दिल्ली की सीमाओं तक सिमट गई है’।
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
Regional Languages
|
|
|
|
नियमित
लेख |
झरोखा जम्मू कश्मीर का : कश्मीर में रोमांचकारी पर्यटन |
जम्मू-कश्मीर विविधताओं और बहुलताओं का घर है| फुर्सत के पल गुजारने के अनेक तरकीबें यहाँ हर आयु वर्ग के लोगों के लिए बेशुमार है| इसलिए अगर आप ऐडवेंचर टूरिस्म या स्पोर्ट अथवा रोमांचकारी पर्यटन में रूचि रखते हैं तो जम्मू-कश्मीर के हर इलाके में आपके लिए कुछ न कुछ है.
|
|
|
|
|
|
|