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4. डिजिटल भारत कार्यक्रम: लोक प्रशासन सुधार की एक अनुकरणीय पहल योगेश के.द्विवेदी, नृपेन्द्र पी. राणा, एंटोनिस सी. सिमिन्टिरस बनितालाल |
यह फोकस आलेख भारत सरकार के फ्लैगशिप कार्यक्रम “डिजिटल भारत कार्यक्रम” पर केन्द्रित है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी(आईसीटी) द्वारा सक्षम लोक प्रशासन सुधार को लेकर तर्क दिया जाता है कि इसमें विभिन्न हितधारकों के लिए अनेक लाभ और अवसर प्रदान करने की बेहतरीन संभावना है (द्विवेदी, 2013)। इस तरह के लाभ के उदाहरणों में शामिल हैं: दक्षता के मामले में सार्वजनिक संगठनों का रूपांतरण; जवाबदेही; प्रभावोत्पादकता; पारदर्शिता; बेहतर संचार तथा समन्वय तथा अधिक महत्वपूर्ण कि यह किसी समय और कहीं भी नागरिक केन्द्रित आईसीटी सक्षम सरकारी सेवा का वितरण कर सकता है और वहां तक उसकी पहुंच बना सकता है (द्विवेदी , 2013)।
हालांकि 1990 के दशक के उत्तरार्ध के दौरान भारत ने ई-सरकार के रूप में इस तरह के सुधार की शुरुआत की,जो 2006 में राष्ट्रीय ई-शासन योजना (एनईजीपी) के प्रारंभ के साथ आगे चलकर अपनी रफ्तार पकड़ ली। अब भी विश्व ई-सरकार विकास की सूची (संयुक्त राष्ट्र ई-सरकार सर्वेक्षण,2014) में भारत की जगह 117वीं है और यह अब भी बहुत पीछे है। योजना के पूर्व अंक (2013) में द्विदी द्वारा लिखे गए लेख में एक न्यायसंगत सूचना समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था बनने के भारत के प्रयास की राह में बनने वाली अनेक बाधाओं को चिह्नित किया गया है।
चिह्नित कारणों के उदाहरणों में शामिल हैं : केन्द्र,राज्य और ज़िला स्तरीय आईसीटी आधारित तंत्र का विखंडन ; प्रणाली के एकीकरण की कमी;अंतिम चरण के अवरोधक; स्थानीय स्तर पर अपर्याप्त कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी); ई-सरकार सेवाओं को लेकर जागरूकता,उसकी सुगमता तथा किये जाने वाले उसके उपयोग की कमी; क्षेत्रीय भाषाओं में ई-सेवा की उपलब्धता का अभाव ,विश्वास की कमी के साथ-साथ जांच-पड़ताल तथा निजता की चिंताएं (द्विदी., 2012; 2013; राणा., 2013)।
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