अंक: October 2014
 
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पृष्ठ कथा 
भारत निर्माता के प्रति
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अग्र लेख

परिवहन क्षेत्रः आर्थिक पक्ष

जगन्नाथ कश्यप 


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Articles
  अधिकतम शासनः ई-शासन के माध्यम से जनपहुंच
रंजीत मेहता
  भारत में ई-गवर्नेंस की शुरुआत रक्षा सेवाओं, आर्थिक नियोजन, राष्ट्रीय जनगणना, चुनाव, कर संग्रह, आदि के लिए कम्प्यूटरीकरण पर जोर के साथ 1960 के दशक के अंत में
  किसानों का कल्याणः वर्तमान परिदृश्य
जे पी मिश्र
  कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का विशालतम क्षेत्र है। इस क्षेत्र ने वर्ष 2014-15 में समग्र सकल मूल्य वर्धन में
  योगः आधुनिक जीवनशैली व अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता
ईश्वर वी बासवरेड्डी
  विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इलाज में चिकित्सा के प्राचीन प्रणालियों को शामिल करने की जरूरत पर जोर दिया है। डब्ल्यूएचओ ने सु
  योग साधकों का मूल्यांकन एवं प्रमाणन
रवि पी सिंह&bsp; मनीष पांडे
  योग संस्थानों के प्रमाणन की योजना उन मूलभूत नियमों में सामंजस्य बिठाने की दिशा में उठाया कदम है,
  योगः स्वस्थ व तनावमुक्त जीवन का संतुलन
ईश्वर एन आचार&bsp; राजीव रस्तोगी
  आज की व्यस्त जीवनशैली में अपने स्वास्थ्य का ख्याल रख पाना एक जटिल कार्य हो गया है लेकिन
भारत में संघीय शासन प्रणाली: एक आवलोकन
पंकज कुमार झा

भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति की यह खासियत रही है कि इसने संघवाद या संघीय प्रणाली के विभिन्न स्वरुपों को आत्मसात किया है, चाहे वह निर्देशित संघवाद हो, एकात्मक हो चाहे सौदेबाजी व सहयोगी संघवाद। विशेष रुप से 90 के बाद के दशक में संघवादी प्रवृति में संघीयकरण यानि फेडरलाईजेशन की प्रवृति की देखी गई है जिसमें हरित संघवाद की भी सुगबुगाहट महसूस की जाने लगी है। यह शोध लेख तीन हिस्सों में बंटा हुआ है पहले हिस्से में संघवाद को परिभाषित करते हुये संघवादी राजनीति से जुड़ी चार अवस्थाओं, दूसरे हिस्से में स्वतंत्र भारत से उदारीकरण के पूर्व मौजूद संघीय प्रवृतियों को रेखांकित किया गया है। तीसरा हिस्सा में नब्बे के बाद से अब तक के संघीय राजनीति के सफ़र व उसकी चुनौतियों को विश्लेषणात्मक तरीके से समझा जा सकेगा।

स्पष्ट है कि इन तीनों ही चरणों पर विश्लेषणात्मक टीका-टिप्पणी करने से पूर्व बहुत संक्षेप में संघीय राजनीति को देखने व उसकी प्रवृतियों का जायजा करने से प्रतीत होता है कि संघीय राजनीति के पीछे संघवाद रुपी शब्दावली कार्य करती है। संघवाद शब्द का प्रयोग समयानुसार भिन्न-भिन्न संदर्भों में किया गया है। वास्तव में, शाब्दिक व वैचारिक प्रयोग ने इसके अर्थ को विकृत कर दिया है। लोकतंत्र की भांति भिन्न-भिन्न लोगों ने संघवाद का भी भिन्न-भिन्न अर्थ लगाया है। सिद्धांत रुप में, संघवादी राज्य का वह संगठनात्मक स्वरुप है जिसमें, किसी समाज में राष्ट्रीय एकता तथा क्षेत्रीय स्वायत्ता के बीच एक संतुलन स्थापित किया जाता है। यह एक प्रक्रिया है जिसमें कुछ स्वतंत्र, राजनीतिक इकाइयाँ एक ऐसा प्रबंधन करती है जिसमें वे सामान्य समस्याओं के लिये संयुक्त नीतियाँ बनाकर व संयुक्त निर्णय करके उनका समाधान कर सकें। दूसरे शब्दों में संघवाद साझे राष्ट्रीय उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु एक संवैधानिक यंत्र है जिसमें देश का संकेन्द्रक व विभाजक प्रवृतियों की विपरित शक्तियों को समेकित करके विभिन्नता में एकता सुनिश्चित की जाती है।

 
 
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